Suryakant Tripathi Nirala आधुनिक हिंदी – साहित्य के छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं । निशाला जी का व्यक्तित्व निराला था । वे अत्यंत स्वाभिमानी, कर्मठ, अध्ययनशील, प्रकृति प्रेमी एवं त्यागी पुरुष थे । वे एक संगीत प्रेमी साहित्यकार थे । हिंदी साहित्य में उनकी प्रतिभा ही निराली है । वे वास्तव में संघर्षशील प्राणी थे । उनका जन्म सन् 1899 ई० में बंगाल के मेदिनीपर जिले में हुआ था । इनके पिता का नाम पं० रामसहाय त्रिपाठी था जो उन्नाव ( उत्तर प्रदेश ) के गाँव गठाकोला के रहने वाले थे । वे बाद में आजीविका उपार्जन हेत मेदिनीपर में आकर बस गए थे । निराला की तीन वर्ष की अवस्था में ही उनकी माता जी का देहावसान हो गया था । इनकी अधिकांश शिक्षा घर पर ही हुई । इन्होंने हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत, बंगाली आदि साहित्य का गहन अध्ययन किया था । चौदह वर्ष की आयु में ही इनका विवाह मनोहरा देवी से हो गया था । इनकी पत्नी अत्यंत सुशील, सुसंस्कृत, सौम्य एवं साहित्य – प्रेमी महिला थी । इनकी पत्नी पुत्र रामकृष्ण और पुत्री सरोज को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई थी । कुछ समय बाद इनके पिता तथा चाचा जी का भी स्वर्गवास हो गया ।
परिवार पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा । इनका जीवन अनेक अभावों एवं विपत्तियों से पीडित रहा किन्तु इन्होने कभी हार नहीं मानी । इसके बाद इन्होंने महिषादल रियासत में नौकरी की किंतु कुछ कारणों से वहां से त्याग – पत्र देकर चले गए । कुछ समय तक रामकृष्ण मिशन कलकत्ता के पत्र ‘ समन्वय ‘ का संपादन किया, बाद में ‘ मतवाला ‘ पत्रिका का संपादन करने लगे ।
सन् 1935 ई० में इनकी पुत्री सरोज का भी निधन हो गया । पुत्री के निधन से निराला जी को गहन शोक हआ । इसी से प्रेरित हो इन्होंने ‘ सरोज स्मृति ‘ शोक गीत लिखा । पुत्री के निधन से वे अत्यंत दु:खी रहने लगे, फिर बीमार हो गए । धीरे धीरे इनका शरीर बीमारियों से जर्जर हो गया था और अंत में 15 अगस्त, सन् 1961 ई० को इलाहाबाद में ये अपना नश्वर शरीर त्याग कर परलोक सिधार गए थे ।
Suryakant Tripathi Nirala Books & Poems
रचनाएँ – निराला जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे । उन्होंने गद्य – पद्य की अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है । उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
- Poetry – अनामिका, परिमल – गीतिका, बेला, नए पत्ते, अणिमा, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, सरोज – स्मृति, राम की शक्तिपूजा, राग – विराग, अर्चना, आराधना आदि ।
- Novel – अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे, चमेली आदि ।
- Story collection – चतुरी चमार, सुकुल की बीवी, लिली सखी ।
- Sketch – कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिह ।
- Essay collection – प्रबंध पद्य, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, प्रबंध परिचय एवं रवि कविता कानन ।
- Biographies – ध्रुव, भीष्म तथा राणा प्रताप ।
- Translation – आनंद मठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेशनंदिनी, रजनी, देवी चौधरानी . राधारानी कृष्णकांत का विल, युगलांगुलीय, राजा सिंह, महाभारत आदि ।
Features Of Books & Poems
साहित्यिक विशेषताएँ – निराला जी छायावादी काव्यधारा के आधार स्तंभ हैं । इनके व्यक्तित्व के साथ – साथ इनकी लेखनी भी । उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं अत्यंत निराली है तथा इनका साहित्य भी निराला है । इनके साहित्य की प्रमख विशेषताएं अग्रलिखित है –
( i ) वैयक्तिकता – छायावादी कवियों के समान निराला के काव्य में वैयक्तिकता की सफल अभिव्यक्ति हुई है । ‘ अपरा ‘ की अनेक कविताओं में इन्होंने अपनी आंतरिक अनुभूतियों तथा व्यक्तिगत सुख – दुःख को चित्रण किया है । जुही की कली, हिंदी के सुमनों के प्रति, मैं अकेला, राम की शक्ति पूजा, विफल वासना, स्नेह निर्झर बह गया है, सरोज स्मृति आदि अनेक कविताओं में इनकी व्यक्तिगत भावनाओं की सफल अभिव्यक्ति हुई है । सरोज स्मृति तो निराला जी के संपूर्ण जीवन का शोक गीत है । वे कहते हैं –
- दुःख ही जीवन की कथा रही,
- क्या कहूँ आज जो नहीं कहीं ।
( ii ) निराशा, वेदना, दुःख एवं करुणा का चित्रण – निराशा, वेदना, दुःख एवं करुणा छायावाद की प्रमख विशेषताएँ हैं । छायावादी कवि वेदना एवं दुःख को जीवन का सर्वस्व एवं उपकारक मानते हैं । निराला जी ने वेदना, करुणा एवं दुःखवाद को कई प्रकार से चित्रित किया है । इसका मूल हेतु जीवन की निराशा है –
- दिये हैं मैंने जगत को फूल – फल ।
- किया है अपनी प्रभा से चकित – चल ;
- यह अनश्वर था सकल पल्लवित पल
- ठाठ जीवन का वही जो ढह गया है ।
( iii ) प्रगतिवादी चेतना – निराला जी प्रगतिवादी चेतना से ओत – प्रोत कवि थे । उन्होंने अपने साहित्य में पूंजीपति वर्ग के प्रति आक्रोश एवं दीन – हीन गरीब के प्रति सहानुभूति की भावना व्यक्त की है । कुकुरमुत्ता, वह तोड़ती पत्थर, भिक्षुक आदि ऐसी ही कविताएँ हैं, जिनमें कवि की प्रगातिवादी चेतना के दर्शन होते हैं । भिक्षुक कविता में वे एक भिखारी की दयनीय करणा दशा का चित्रण करत हुए कहते है –
- वह आता-
- दो टक कलेजे के करता, पछताता पथ पर आता
- पेट – पीठ, दोनों मिलकर हैं एक,
- चल रहा लकुटिया टेक-
- मुट्ठीभर दाने को भूख मिटाने को
- मुँह – फटी पुरानी झोली को फैलाता
- वह आता-
( iv ) विद्रोह की भावना – निराला जी विद्रोही प्रवृत्ति के व्यक्ति थे । यही विद्रोह उनके काव्य में भी अभिव्यक्त हुआ है । निराला जी अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छंदता प्रेमी रहे थे । ये तो आजीवन संघर्ष ही करते रहे । इनकी बादल राग, कुकुरमुत्ता आदि अनेक कविताओं में विद्रोह की भावना अभिव्यक्त हुई है । ‘ कुकुरमुत्ता ‘ में वे पूँजीपति वर्ग के प्रतीक गुलाब के प्रति विद्रोह करते हुए कहते हैं –
- अबे !
- सुन बे, गुलाब
- भूल मत गर पाई खुशबू रंगो आब ;
- खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट
- डाल पर इतराता है कैपिटेलिस्ट !
( v ) प्रकृति चित्रण – छायावादी कवियों का प्रकृति से अन्यतम संबंध रहा है । प्रकृति पर चेतना का आरोप तथा मानवीकरण करना छायावाद की प्रमुख विशेषता रही है । निराला जी भी इससे अछूते नहीं हैं । उन्होंने भी प्रकृति पर चेतना का आरोप करके प्रकृति का अनूठा चित्रण किया है । बादलराग कविता में प्रकृति का मानवीकरण करते हए कवि कहते हैं –
- हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
- शस्य अपार,
- हिल – हिल
- खिल – खिल
- हाथ हिलाते तझे बलाते
- विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते ।
( vi ) देश – प्रेम की भावना – निराला जी के हृदय में देश – प्रेम की उदात्त भावना भरी हुई थी । उनको अपने देश, समाज तथा संस्कृति से गहन प्रेम था । देश के सांस्कृतिक पतन को देखकर निराला जी अत्यंत दु:खी हो जाते हैं । उन्होंने स्पष्ट कहा है कि हमारे देश के भाग्य के आकाश को विदेशी शासक रूपी राहू ने ग्रस रखा है । उनकी इच्छा है कि किसी भी तरह देश का भाग्योदय हो जिससे भारत का जन-जन आनंदविभोर हो उठे । भारती वंदना, जागो फिर एक बार, तलसीदास छत्रपति शिवाजी का पत्र, राम की शक्ति पूजा आदि ऐसी अनेक कविताओं से निराला जी की देशभक्ति की भावना अभिव्यक्त हुई है ।
( vii ) रहस्यवादी भावना – छायावाद के अन्य कवियों की भाँति निराला के साहित्य में रहस्यवादी भावना का चित्रण हुआ है । उन्होंने अपनी इस भावना को जिज्ञासा तथा कौतूहल के रूप में अभिव्यक्त किया है । तुम और मैं, यमुना के प्रति आदि कविताओं में निराला की रहस्य – भावना स्पष्ट झलकती है जैसे –
- लहरों पर लहरों का चंचल नाच, याद नहीं था करना इसकी जांच ।
- अगर पूछता कोई तो वह कहती, उसी तरह हँसती पागल हँसी होती
- जब जीवन की प्रथम उमंग, जा रही मैं मिलने के लिए ।
( viii ) नवीन मुक्तक छंद का प्रयोग – निराला जी मुक्तक छंद के प्रणेता हैं । हिंदी – साहित्य को यह उनकी अदवितीय देन है । निराला जी ने सदियों से चली परंपरा को तोड़कर मुक्तक छंद में काव्य रचना की । निराला के अनुसार मनुष्य की मक्ति कर्मों के बंधन से छुटकारा पाना है और कविता की मुक्ति छंदों के शासन से अलग होना । निराला जी ने मुक्तक छंद का निर्भयतापर्वक प्रयोग किया है । इसके बाद साहित्य में इसी छंद का प्रचलन हो गया है । जुही की कली, पंचवटी प्रसंग, छत्रपति शिवाजी का पत्र, जागो फिर एक बार आदि मुक्तक छंद की प्रसिद्ध कविताएँ हैं ।
( ix ) भाषा – शैली – निराला जी ने हिंदी – साहित्य को नवीन भाव, नवीन भाषा और नवीन मुक्तक छंद प्रदान किए हैं । इन्होंने अपने बुद्धि कौशल के बल पर हिंदी को अनेक उपहार भेंट किए हैं । जो प्रखरता और विद्रोह उनके व्यक्तित्व में था वही प्रखरता और विद्रोह उनकी भाषा में भी दृष्टिगोचार होता है । निराला जी ने अपने साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खडी बोली भाषा का प्रयोग किया है जिसमें तत्सम, तद्भव, विदेशी आदि भाषाओं के शब्दों का मेल है । कोमल कल्पना के अनरुप इन्होंने कोमलाकांत पदावली का प्रयोग किया है । कोमलता, संगीतात्मकता, शब्दों की मधुर योजना भाषा का लाक्षणिक प्रयोग, चित्रात्मकता आदि इनकी भाषा की विशेषताएँ हैं ।
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