सूरदास जीवनी – Biography of Surdas in Hindi
अपना जीवन कृष्ण को समर्पित करने वाले सूरदास एक संत होने के साथ—साथ महान कवि और संगीतकार थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है। सूरदास के जीवन और मृत्यु को लेकर कोई पुख्ता तथ्य न होने के कारण लोगों के अलग—अलग मत रहे हैं। गोस्वामी हरिराय के ‘भाव प्रकाश’ के अनुसार सूरदास का जन्म दिल्ली के पास सीही नाम के गांव में एक अत्यन्त निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वहीं ‘चौरासी वैष्णव की वार्ता’ के आधार पर वे 1478 ईस्वी में आगरा-मथुरा रोड पर स्थित रुनकता नामक गांव में पैदा हुए थे। बाद में वे गऊघाट आकर रहने लगे| इनके पिता रामदास एक गायक थे| सूरदास जब गऊघाट में रहते थे तो इसी पर इनकी मुलाकात बल्लभाचार्य से हुई और सूरदास उनके शिष्य बन गए|
मदन मोहन सूरदास कैसे बने ?
मदन मोहन एक बहुत ही सुन्दर और तेज बुद्धि के नवयुवक थे वह हर दिन नदी के किनारे जा कर बैठ जाता और गीत लिखता । । एक दिन एक ऐसा वाकया हुआ जिसने उसका मन को मोह लिया । हुआ ये की एक सुन्दर नवयुवती नदी किनारे कपड़े धो रही थी, मदन मोहन का ध्यान उसकी तरफ चला गया । उस युवती ने मदन मोहन को ऐसा आकर्षित किया की वह कविता लिखना भूल गए और पुरा ध्यान लगा कर उस युवती को देखने लगे।
उनको ऐसा लगा मानो यमुना किनारे राधिका स्नान कर के बैठी हो । उस नवयुवती ने भी मदन मोहन की तरफ देखा और उनके पास आकर बोली आप मदन मोहन जी हो ना? तो वह बोले, हां मैं मदन मोहन हूँ। कविताये लिखता हूँ तथा गाता हूँ आपको देखा तो रुक गया । नवयुवती ने पूछा क्यों ? तो वह बोले आप हो ही इतनी सुन्दर । यह सिलसिला कई दिनों तक चला । जब यह बात मदन मोहन के पिता को पता चली तो उनको बहुत क्रोध आया । फिर मदन मोहन ने उसका घर छोड़ दिया । पर उस सुन्दर युवती का चेहरा उनके सामने से नहीं जा रहा था एक दिन वह मंदिर मे बैठे थे तभी वह एक शादीशुदा बहुत ही सुन्दर स्त्री आए ।
मदन मोहन उनके पीछे पीछे चल दिए । जब वह उसके घर पहुंचे तो उसके पति ने दरवाजा खोला तथा पुरे आदर समानं के साथ उन्हें अंदर बिठाया । फिर मदन मोहन ने दो जलती हुए सिलाया मांगी तथा उसे अपनी आँख में डाल दी । इस तरह मदन मोहन बने महान कवि सूरदास ।
Surdas Career
सूरदास को हिंदी साहित्य का सूरज कहा जाता है। वे अपनी कृति “सूरसागर” के लिये प्रसिद्ध है। कहा जाता है की उनकी इस कृति में लगभग 100000 गीत है, जिनमे से आज केवल 8000 ही बचे है। उनके इन गीतों में कृष्ण के बचपन और उनकी लीला का वर्णन किया गया है। सूरदास कृष्ण भक्ति के साथ ही अपनी प्रसिद्ध कृति सूरसागर के लिये भी जाने जाते है। इतना ही नहीं सूरसागर के साथ उन्होंने सुर-सारावली और सहित्य-लहरी की भी रचना की है।
सूरदास की मधुर कविताये और भक्तिमय गीत लोगो को भगवान् की तरफ आकर्षित करते थे। धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढती गयी, और मुघल शासक अकबर (1542-1605) भी उन्हें दर्शक बन गये। सूरदास ने अपने जीवन के अंतिम वर्षो को ब्रज में बिताया। और भजन गाने के बदले उन्हें जो कुछ भी मिलता उन्ही से उनका गुजारा होता था। कहा जाता है की इसवी सन 1584 में उनकी मृत्यु हुई थी।
सूरदास जी को वल्लभाचार्य के आठ शिष्यों में प्रमुख स्थान प्राप्त था। इनकी मृत्यु सन 1583 ई० में पारसौली नामक स्थान पर हुई। कहा जाता है कि सूरदास ने सवा लाख पदों की रचना की। इनके सभी पद रागनियों पर आधारित हैं। सूरदास जी द्वारा रचित कुल पांच ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं, जो निम्नलिखित हैं: सूर सागर, सूर सारावली, साहित्य लहरी, नल दमयन्ती और ब्याहलो। इनमें से नल दमयन्ती और ब्याहलो की कोई भी प्राचीन प्रति नहीं मिली है। कुछ विद्वान तो केवल सूर सागर को ही प्रामाणिक रचना मानने के पक्ष में हैं।
Surdas जी के पाँच ग्रन्थ
(1.) सूरसागर-
(2.) सूरसारावली-
(3.) साहित्य लहरी –
(4.) नल दमयन्ती-
(5.) ब्याहलो-
सूरदास की रचनाये
1. भाव भगति है जाकें के पद,
2. चरन कमल बंदौ हरिराई ,
3. मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे ,
4. प्रीति करि काहु सुख न लह्यो ,
5. निसिदिन बरसत नैन हमारे,
6. प्रीति करि काहू सुख न लह्यो ,
7. दृढ इन चरण कैरो भरोसो ,
8. तिहारो दरस मोहे भावे ,
9. बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं ,
10. भोरहि सहचरि कातर दिठि,
11. ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी,
12. मधुकर! स्याम हमारे चोर ,
13. अंखियां हरि–दरसन की प्यासी ,
14. चरन कमल बंदौ हरि राई,
Surdas Death
सूरदास की मृत्यु वर्ष 1580 ईस्वी में हुई थी। सूरदास का जीवन काल “वर्ष 1478 से वर्ष 1580 तक” यानी कुल 102 वर्ष का रहा था। अपने दिर्ध आयु जीवन काल में सूरदास ने कई ग्रंथ लिखे और काव्य पद की रचना की। सूरदास का जीवन कृष्ण भक्ति के लिए समर्पित था।
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