Jainendra Kumar हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार हैं । उनको मनोवैज्ञानिक कथाधारा का प्रवर्तक माना जाता है । इसके साथ – साथ वे एक श्रेष्ठ निबंधकार भी हैं । उनका जन्म सन् 1905 ई० को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के कौड़ियागंज नामक स्थान पर हुआ था । उनकी प्रारंभिक शिक्षा हस्तिनापुर के जैन गुरुकुल में हुई । उन्होंने वहीं पढ़ते हुए दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की । तत्पश्चात् काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा हेतु प्रवेश लिया लेकिन गाँधी जी के असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और वे गाँधी जी के साथ असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए । वे गाँधी जी से अत्यधिक प्रभावित हुए । गाँधी जी के जीवन – दर्शन का प्रभाव उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखाई देता है ।
सन् 1984 ई० में उनकी साहित्य सेवा भावना के कारण उन्हें उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान ने भारत – भारती सम्मान से सुशोभित किया । उनको साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ । भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवाओं के कारण पदमभूषण अलंकृत किया । सन् 1990 ई० में ये महान् साहित्य सेवी संसार से विदा हो गए ।
Jainendra Kumar Books And Poems
रचनाएँ – जैनेंद्र कुमार जी एक कथाकार होने के साथ प्रमुख निबंधकार भी थे । उन्होंने उच्च कोटि के निबंधों की भी रचना की है । हिंदी कथा साहित्य को उन्होंने अपनी लेखनी से समृद्ध किया है । उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
- उपन्यास – परख , अनाम स्वामी , सुनीता , कल्याणी , त्यागपत्र , जयवर्धन , मुक्तिबोध , विवर्त ।
- कहानी संग्रह – वातायन , एक रात , दो चिड़िया , फाँसी , नीलम देश की राज कन्या , पाजेब ।
- निबंध संग्रह – जड़ की बात , पूर्वोदय , साहित्य का श्रेय और प्रेय , संस्मरण , इतस्ततः , प्रस्तुत प्रश्न , सोच विचार , समय और हम ।
Features Of Books And Poems
साहित्यिक विशेषताएँ – हिंदी कथा साहित्य में प्रेमचंद के पश्चात् जैनेंद्र जी प्रतिष्ठित कथाकार माने जाते हैं । उन्होंने अपने उपन्यासों का विषय भारतीय गाँवों की अपेक्षा नगरीय वातावरण को बनाया है । उन्होंने नगरीय जीवन की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का चित्रण किया है । इनके परख , सुनीता , त्यागपत्र , कल्याणी में नारी – पुरुष के प्रेम की समस्या का मनोवैज्ञानिक धरातल पर अनूठा वर्णन किया है ।
जैनेंद्र जी ने अपनी कहानियों में दार्शनिकता को अपनाया है । कथा साहित्य में उन्होंने मानव मन का विश्लेषण किया है । यद्यपि जैनेंद्र का दार्शनिक विवेचन मौलिक है लेकिन निजीपन के कारण पाठक में ऊब उत्पन्न नहीं करता । इनकी कहानियों में जीवन से जुड़ी विभिन्न समस्याओं का उल्लेख किया गया है । उन्होंने समाज , धर्म , राजनीति , अर्थनीति , दर्शन , संस्कृति , प्रेम आदि विषयों का प्रतिपादन किया है तथा सभी विषयों से संबंधित प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास किया है । जैनेंद्र जी का साहित्य गाँधीवादी चेतना से अत्यंत प्रभावित है जिसका सुष्ठु एवं सहज उपयोग उन्होंने अपने साहित्य में किया है । उन्होंने गाँधीवाद को हृदयगम करके सत्य अहिंसा , आत्मसमर्पण आदि सिद्धांतों का अनूठा चित्रण किया है । इससे उनके कथा साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का भाव भी मुखरित होता है । लेखक ने अपने समाज में फैली कुरीतियों शोषण अत्याचार , समस्याओं का डटकर विरोध किया है ।
भाषा शैली – जैनेंद्र जी एक मनोवैज्ञानिक कथाकार हैं । उनकी कहानियों की भाषा शैली अत्यंत सरल , सहज एवं भावानुकूल है । इनके निबंधों में भी सहज , सरल एवं स्वाभाविक भाषा शैली को अपनाया गया है । इनके साहित्य में संक्षिप्त कथानक संवाद , भावानुकूल भाषा शैली आदि विशेषताएं सर्वत्र विद्यमान हैं ।
बाज़ार दर्शन जैनेंद्र जी का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें गहन वैचारिकता और साहित्य सुलभ लालित्य का मणिकांचन संयोग दष्टिगोचर होता है । यह लेखक का एक विचारात्मक निबंध है जिसमें इन्होंने रोचक कथात्मक शैली का प्रयोग किया है । इनकी भाषा सहज , सरल है । लेखक ने खडी बोली के साथ , उर्द , फारसी , अंग्रेजी , साधारण बोलचाल की भाषाओं का प्रयोग किया है । तत्सम प्रधान शब्दावली के साथ तद्भव शब्दों का भी प्रयोग मिलता है । जैसे –
- अंग्रेज़ी – बाज़ार , बंडल , एनर्जी , पर्चेजिंग पावर , मोहर आदि ।
- उर्दू – फ़ारसी – करतब , फ़िजूल , शैतान , खूब , हरज़ , मालूम , नाचीज़ आदि ।
- तत्सम – अतुलित परिमित , कृतार्थ , अपूर्णता , आशक्त , लोकप्रिय आदि ।
- तद्भव – आँख , सामान , सच्चा आदि ।
लेखक ने अपने निबंध में विचारात्मक , संवादात्मक , व्यंग्यात्मक आदि – शैलियों का प्रयोग किया है । उनकी संक्षिप्त संवाद शैली अत्यंत रोचक एवं प्रभावपूर्ण है । यथा –
- मैंने पूछा – कहाँ रहे ?
- बोले – बाज़ार देखते रहे ।
- मैंने कहा – बाज़ार क्या देखते रहे ?
- बोले – क्यों ? बाज़ार
- तब मैंने कहा – लाए तो कुछ नहीं ।
- बोले – हाँ । पर यह समझ न आता था कि न लूँ तो क्या ?
वस्तुतः जैनेंद्र कुमार जी हिंदी साहित्यकार के श्रेष्ठ निबंधकार थे । उनका हिंदी साहित्य में विशेष योगदान है जिसके फलस्वरूप वे एक विशिष्ट स्थान के योग्य हैं । उनका ‘ बाज़ार दर्शन ‘ भाषा शैली की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण निबंध है ।
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