Harivansh Rai Bachchan Biography – श्री हरिवंशराय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं । आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है । इनका जन्म 21 नवंबर , सन् 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के प्रयाग ( इलाहाबाद ) के एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था । इनकी प्रारंभिक शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल , कायस्थ पाठशाला तथा गवर्नमेंट स्कूल में हुई थी । इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय में M.A. English में दाखिला लिया , लेकिन असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और सन् 1939 ई० में काशी विश्वविद्यालय से BTC की डिग्री प्राप्त की ।
1942 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे । इसके बाद ये इंग्लैंड चले गए । वहां इन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में Phd की उपाधि प्राप्त की । सन् 1955 ई० में भारत सरकार ने इन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया । जीवन के अंतिम क्षणों तक वे स्वतंत्र लेखन करते रहे । इन्हें सोवियतलैंड तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया । ‘ दशद्वार से सोपान तक ‘ रचना पर इन्हें सरस्वती सम्मान दिया गया । इनकी प्रतिभा और साहित्य सेवा को देखकर भारत सरकार ने इनको ‘ पद्मभूषण ‘ की उपाधि से अलंकृत किया । 18 जनवरी , सन् 2003 में ये इस संसार को छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए ।
Harivansh Rai Bachchan Awards
हरिवंश राय बच्चन को उनकी कृति ‘दो चट्टाने’ के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ और एफ्रो एशियाई सम्मेलन के ‘कमल पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउन्डेशन ने उनकी आत्मकथा के ‘क्या भूलूंक्या याद करूं मैं’ के लिए सरस्वती सम्मान, भारत सरकार ने साहित्य जगत में योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया था।
Harivansh Rai Bachchan Poems And Books
हरिवंशराय बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार हैं । उन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है । उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
- Poetry collection – मधुशाला , मधुबाला , मधुकलश , निशा निमंत्रण , एकांत संगीत , आकुल – अंतर , मिलन यामिनी , सतरंगिणी , आरती और अंगारे , नए पुराने झरोखे , टूटी – फूटी कड़ियाँ , बुद्ध और नाचघर ।
- आत्मकथा चार खंड – क्या भूलूँ क्या याद करूँ , नीड़ का निर्माण फिर , बसेरे से दूर , दश द्वार से सोपान तक ।
- अनुवाद – हैमलेट , जनगीता , मैकबेथ ।
- डायरी – प्रवास की डायरी ।
साहित्यिक विशेषताएँ – श्री हरिवंशराय बच्चन जी एक श्रेष्ठ साहित्यकार थे , जिन्होंने हालावाद का प्रवर्तन कर साहित्य को एक नया मोड़ दिया । उनका एक कहानीकार के रूप में उदय हुआ था , लेकिन बाद में अपने बुद्धि – कौशल के आधार पर उन्होंने अनेक विधाओं पर लिखा ।
Salient Features Of His Literature
(i) प्रेम और सौंदर्य – श्री हरिवंशराय बच्चन जी हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं जिसमें प्रेम और सौंदर्य का अनूठा संगम है । इन्होंने साहित्य में प्रेम और मस्ती भरकर एक नया मोड़ दिया । इन्होंने प्रेम और सौंदर्य को जीवन का अभिन्न अंग मान कर उसका चित्रण किया है । ये प्रेम – रस में डूबकर रस की ऐसी पिचकारियां छोड़ते हैं जिससे संपूर्ण जग मोहित हो उठता है । वे कहते हैं –
- इस पार प्रिये , मधु है तुम हो
- उस पार न जाने क्या होगा ?
बच्चन जी ने अपने काव्य में ही नहीं बल्कि गद्य साहित्य में भी प्रेम और सौंदर्य की सुंदर अभिव्यक्ति की है । इस संवेदनहीन और स्वार्थी दुनिया को ही प्रेम – रस में डुबो देना चाहते हैं । वे प्रेम का ऐसा ही संदेश देते हुए कहते है
- मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ ,
- मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ ,
- जिसको सुनकर जग झूम झुके लहराए ,
- मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ !
(ii) मानवतावाद – मानवतावाद एक ऐसी विराट भावना है जिसमें संपूर्ण जगत् के प्राणियों का हित चिंतन किया जाता है । बच्चन जी केवल प्रेम और मस्ती में डूबे कवि नहीं थे बल्कि उनके साहित्य में ऐसी विराट भावना के भी दर्शन होते हैं । उनके साहित्य में मानव के प्रति प्रेम भावना अभिव्यक्त हुई है । इन्होंने निरंतर स्वार्थी मनुष्यों पर कटु व्यंग्य किए हैं ।
(iii) वैयक्तिकता – श्री हरिवंशराय बच्चन जी के साहित्य में व्यक्तिगत भावना सर्वत्र झलकती है । उनकी इस व्यक्तिगत भावना में सामाजिक भावना मिली हुई है । एक कवि की निजी अनुभूति भी अर्थात् सुख – दुःख का चित्रण भी समाज का ही चित्रण होता है । बच्चन जी ने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर ही जीवन और संसार को समझा और परखा है । वे कहते हैं –
- मैं जग – जीवन का भार लिए फिरता हूँ ,
- फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ ,
- कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर ।
- मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ ॥
(iv) रहस्यवादी भावना – बच्चन जी के हालावाद में रहस्यवादी भावना का अनूठा संगम है । उन्होंने जीवन को एक प्रकार का मधुकलश , दुनिया को मधुशाला , कल्पना को साकी तथा कविता को एक प्याला माना है । छायावादी कवियों की भाँति उनके काव्य में भी रहस्यात्मकता की अभिव्यक्ति हुई है ।
(v) सामाजिक चित्रण – श्री हरिवंशराय बच्चन सामाजिक चेतना से ओत – प्रोत कवि हैं । उनके काव्य में समाज की यथार्थ अभिव्यक्ति हुई है । इनकी वैयक्तिकता में भी सामाजिक भावना का चित्रण हुआ है ।
(vi) भाषा – शैली – हरिवंशराय बच्चन प्रखर बुद्धि के कवि थे । उनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है । संस्कृत की तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग हुआ है । इसके साथ – साथ तद्भव शब्दावली उर्दू , फारसी , अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है । कवि ने प्रांजल शैली का प्रयोग किया है जिसके कारण इनका साहित्य लोकप्रिय हुआ है । गीति शैली का भी इन्होंने प्रयोग किया है ।
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